शब्द-रचना-हम स्वभावतः भाषा-व्यवहार में कम-से-कम शब्दों का प्रयोग
करके अधिक-से-अधिक काम चलाना चाहते हैं। अतः शब्दों के आरंभ अथवा अंत में कुछ
जोड़कर अथवा उनकी मात्राओं या स्वर में कुछ परिवर्तन करके नवीन-से-नवीन अर्थ-बोध
कराना चाहते हैं। कभी-कभी दो अथवा अधिक शब्दांशों को जोड़कर नए अर्थ-बोध को
स्वीकारते हैं। इस तरह एक शब्द से कई अर्थों की अभिव्यक्ति हेतु जो नए-नए शब्द
बनाए जाते हैं उसे शब्द-रचना कहते हैं।
शब्द रचना
के चार प्रकार हैं-
1. उपसर्ग लगाकर
2. प्रत्यय लगाकर
3. संधि द्वारा
4. समास द्वारा
1. उपसर्ग लगाकर
2. प्रत्यय लगाकर
3. संधि द्वारा
4. समास द्वारा
उपसर्ग
वे शब्दांश जो किसी शब्द के आरंभ में लगकर उनके अर्थ में विशेषता ला देते हैं
अथवा उसके अर्थ को बदल देते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं।
जैसे-परा-पराक्रम, पराजय, पराभव, पराधीन, पराभूत।
उपसर्गों को चार भागों में बाँटा जा सकता हैं-
(क) संस्कृत के उपसर्ग
(ख) हिन्दी के उपसर्ग
(ग) उर्दू के उपसर्ग
(घ) उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय
उपसर्गों को चार भागों में बाँटा जा सकता हैं-
(क) संस्कृत के उपसर्ग
(ख) हिन्दी के उपसर्ग
(ग) उर्दू के उपसर्ग
(घ) उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय
(क) संस्कृत के उपसर्ग
उपसर्ग
|
अर्थ (में)
|
शब्द-रूप
|
अति
|
अधिक, ऊपर
|
अत्यंत, अत्युत्तम, अतिरिक्त
|
अधि
|
ऊपर, प्रधानता
|
अधिकार, अध्यक्ष, अधिपति
|
अनु
|
पीछे, समान
|
अनुरूप, अनुज, अनुकरण
|
अप
|
बुरा, हीन
|
अपमान, अपयश, अपकार
|
अभि
|
सामने, अधिक पास
|
अभियोग, अभिमान, अभिभावक
|
अव
|
बुरा, नीचे
|
अवनति, अवगुण, अवशेष
|
आ
|
तक से, लेकर, उलटा
|
आजन्म, आगमन, आकाश
|
उत्
|
ऊपर, श्रेष्ठ
|
उत्कंठा, उत्कर्ष, उत्पन्न
|
उप
|
निकट, गौण
|
उपकार, उपदेश, उपचार, उपाध्यक्ष
|
दुर्
|
बुरा, कठिन
|
दुर्जन, दुर्दशा, दुर्गम
|
दुस्
|
बुरा
|
दुश्चरित्र, दुस्साहस, दुर्गम
|
नि
|
अभाव, विशेष
|
नियुक्त, निबंध, निमग्न
|
निर्
|
बिना
|
निर्वाह, निर्मल, निर्जन
|
निस्
|
बिना
|
निश्चल, निश्छल, निश्चित
|
परा
|
पीछे, उलटा
|
परामर्श, पराधीन, पराक्रम
|
परि
|
सब ओर
|
परिपूर्ण, परिजन, परिवर्तन
|
प्र
|
आगे, अधिक, उत्कृष्ट
|
प्रयत्न, प्रबल, प्रसिद्ध
|
प्रति
|
सामने, उलटा, हरएक
|
प्रतिकूल, प्रत्येक, प्रत्यक्ष
|
वि
|
हीनता, विशेष
|
वियोग, विशेष, विधवा
|
सम्
|
पूर्ण, अच्छा
|
संचय, संगति, संस्कार
|
सु
|
अच्छा, सरल
|
सुगम, सुयश, स्वागत
|
(ख) हिन्दी के उपसर्ग
ये प्रायः संस्कृत उपसर्गों
के अपभ्रंश मात्र ही हैं।
उपसर्ग
|
अर्थ (में)
|
शब्द-रूप
|
अ
|
अभाव, निषेध
|
अजर, अछूत, अकाल
|
अन
|
रहित
|
अनपढ़, अनबन, अनजान
|
अध
|
आधा
|
अधमरा, अधखिला, अधपका
|
औ
|
रहित
|
औगुन, औतार, औघट
|
कु
|
बुराई
|
कुसंग, कुकर्म, कुमति
|
नि
|
अभाव
|
निडर, निहत्था, निकम्मा
|
(ग) उर्दू के उपसर्ग
उपसर्ग
|
अर्थ (में)
|
शब्द-रूप
|
कम
|
थोड़ा
|
कमबख्त, कमजोर, कमसिन
|
खुश
|
प्रसन्न, अच्छा
|
खुशबू, खुशदिल, खुशमिजाज
|
गैर
|
निषेध
|
गैरहाजिर, गैरकानूनी, गैरकौम
|
दर
|
में
|
दरअसल, दरकार, दरमियान
|
ना
|
निषेध
|
नालायक, नापसंद, नामुमकिन
|
बा
|
अनुसार
|
बामौका, बाकायदा, बाइज्जत
|
बद
|
बुरा
|
बदनाम, बदमाश, बदचलन
|
बे
|
बिना
|
बेईमान, बेचारा, बेअक्ल
|
ला
|
रहित
|
लापरवाह, लाचार, लावारिस
|
सर
|
मुख्य
|
सरकार, सरदार, सरपंच
|
हम
|
साथ
|
हमदर्दी, हमराज, हमदम
|
हर
|
प्रति
|
हरदिन, हरएक,हरसाल
|
(घ) उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होने वाले संस्कृत अव्यय
उपसर्ग
|
अर्थ (में)
|
शब्द-रूप
|
अ (व्यंजनों से पूर्व)
|
निषेध
|
अज्ञान, अभाव, अचेत
|
अन् (स्वरों से पूर्व)
|
निषेध
|
अनागत, अनर्थ, अनादि
|
स
|
सहित
|
सजल, सकल, सहर्ष
|
अधः
|
नीचे
|
अधःपतन, अधोगति, अधोमुख
|
चिर
|
बहुत देर
|
चिरायु, चिरकाल, चिरंतन
|
अंतर
|
भीतर
|
अंतरात्मा, अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्जातीय
|
पुनः
|
फिर
|
पुनर्गमन, पुनर्जन्म, पुनर्मिलन
|
पुरा
|
पुराना
|
पुरातत्व, पुरातन
|
पुरस्
|
आगे
|
पुरस्कार, पुरस्कृत
|
तिरस्
|
बुरा, हीन
|
तिरस्कार, तिरोभाव
|
सत्
|
श्रेष्ठ
|
सत्कार, सज्जन, सत्कार्य
|
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